गुमला जिले में मत्स्य पालन बना ग्रामीण आजीविका का सशक्त माध्यम
- महिलाओं और युवाओं की बदली तस्वीर
- 48 केज में 6 समिति सामूहिक रूप से करेगी मत्स्यपालन
- 1-2 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित कर रही समिति

गुमला | उपायुक्त प्रेरणा दीक्षित के नेतृत्व में मत्स्य उत्पादन एवं ग्रामीण रोजगार को प्रोत्साहन देने के लिए योजनाबद्ध ढंग से कार्य हो रहा है। इसी क्रम में शनिवार को उपायुक्त ने बसिया प्रखंड का दौरा कर मत्स्य पालन की गतिविधियों एवं व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया। बसिया प्रखंड के नारिकेला में एक ही स्थान पर 20 ग्रो आउट तालाबों का निर्माण किया गया है, जहां स्थानीय ग्रामीणों द्वारा संगठित रूप से मत्स्य पालन किया जा रहा है। साथ ही उग्रवाद प्रभावित धन सिंह जलाशय में केज कल्चर योजना के अंतर्गत मत्स्य पालन को बढ़ावा देने हेतु विशेष प्रयास किए गए हैं। जलाशय में 48 केज का निर्माण किया गया है जिसमें 6 समितियों द्वारा सामूहिक रूप से कार्य किया जा रहा है। इससे अब तक 300 से अधिक ग्रामीण लाभान्वित हुए हैं, और प्रत्येक समिति के सदस्य सालाना 1-2 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित कर रहे हैं।
महिलाओं की सफलता की प्रेरणादायक कहानी : मछली पालन बना आर्थिक स्वावलंबन का आधार
बसिया प्रखंड की प्रीति कुमारी, बबीता देवी और चरकी देवी ने मत्स्य पालन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। पूर्व में गृह कार्य में संलग्न ये महिलाएं अपने आसपास के किसानों को मछली पालन करते देख प्रेरित हुईं और छोटे स्तर पर डोभा में मछली पालन शुरू किया।
तीनों महिलाओं को मत्स्य विभाग द्वारा तीन दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया, साथ ही 90 प्रतिशत अनुदान पर स्पॉन, फीड एवं फिश कैचिंग नेट की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। वर्ष 2023-24 में इन महिलाओं ने प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के अंतर्गत श्ग्रो आउट तालाब का निर्माण कराया। तालाब निर्माण की कुल लागत ₹7 लाख है, जिसमें अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग को 60 प्रतिशत अनुदान (जिसमें से 60 प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा सहायता राशि दी गई एवं 40 प्रतिशत राशि राज्य सरकार द्वारा दिया गया) एवं झारखंड सरकार द्वारा ₹1.75 लाख की अतिरिक्त सहायता दी गई। इसके साथ ही मत्स्य बीज व आहार हेतु ₹4 लाख की यूनिट लागत में ₹2.40 लाख का अनुदान भी प्रदान किया गया।
वर्तमान में इन महिलाओं के पास 7.5 एकड़ भूमि में 12 तालाब हैं जिनमें 50,000 अंगुलिकाओं का संचयन किया गया है। ये मत्स्य उत्पादन जिले के सिसई, भरनो, कामडारा, पालकोट और गुमला प्रखंडों तक पहुंच रहा है, जिससे स्थानीय किसानों को बाहरी बाजारों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।
इनकी पहल से 30-35 ग्रामीणों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है और प्रत्येक लाभुक को सालाना 4-5 लाख रुपये तक की शुद्ध आय हो रही है।
स्थानीय फिश फीड मिल से आत्मनिर्भरता की ओर एक और कदम
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2022-23 में कुम्हरिया गांव, प्रखंड बसिया के ज्योति लकड़ा द्वारा लघु फिश फीड मिल की स्थापना की गई। इस मिल में 0.40 उउ से 4 उउ तक के उच्च गुणवत्ता वाले फीड का उत्पादन होता है, जिसे स्थानीय मत्स्य कृषक आसानी से खरीद पा रहे हैं।
फीड मिल से 20-25 ग्रामीणों को रोजगार मिला है और ज्योति लकड़ा को वार्षिक ₹8-10 लाख की आय हो रही है। इनका भी ₹5 लाख का मछुआरा दुर्घटना बीमा कराया गया है।
धन सिंह जलाशय में केज कल्चर योजना बनी बदलाव की धुरी
अति उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए विशेष केंद्रीय सहायता योजना के अंतर्गत वर्ष 2021-22 में धन सिंह जलाशय में 48 केजों की स्थापना की गई। 6 समितियों द्वारा संचालित यह योजना आज जिले के लिए एक मॉडल के रूप में सामने आई है। इन समितियों ने अब तक तीन फसल चक्रों में लाखों की मत्स्य बिक्री की है। एक समिति ने ₹6.60 लाख की आमदनी से एक चार पहिया वैन भी खरीदा है।
इस योजना से लगभग 300 मत्स्य कृषकों को हर चक्र में ₹1-1.5 लाख की शुद्ध आय हुई है। साथ ही, पलायन में कमी और स्थानीय स्तर पर मछली की उपलब्धता से कुपोषण के स्तर में भी सुधार हुआ है।
“गुमला जिले में मछली पालन अब केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि सशक्त ग्रामीण आजीविका का रूप ले चुका है। हमारा प्रयास है कि महिलाएं और युवा इससे जुड़कर आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ें।” प्रेरणा दीक्षित, उपायुक्त, गुमला।
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